Hindi Literature Books
Hindi Literature Books
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SPECIFICATION:
- Publisher : Manjul Publishing House
- By : GEORGE S. CLASON
- Cover : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2005
- Pages : 182
- Weight : 180gm.
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10 : 8183220193
- ISBN-13 : 978-8183220194
DESCRIPTION:
बैबिलॉन का सबसे अमीर आदमी आर्थिक सफलता के शाश्वत रहस्य धन-दौलत पर लिखी सबसे प्रेरक पुस्तक लाखों लोगों ने इस पुस्तक को पसंद किया है I इस पुस्तक में दिए गए सिद्धांतों का प्रयोग करके आप अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं I इस पुस्तक में दौलतमंद बनने का रहस्य बताया गया है I आर्थिक सफलता के शाश्वत रहस्य सुख-समृद्धि की निश्चित राह बैबिलॉन की मसहूर कहानियों ने अनगिनत पाठकों की मदद की है I धन, आर्थिक योजना और व्यक्तिगत दौलत के विषय पर इसे सर्वश्रेष्ठ प्रेरक पुस्तक कहा जाता है I आसान भाषा में लिखी दिलचस्प और ज्ञानवर्धक कहानियाँ आपको दौलत की राह पर ले जाती हैं तथा सुख की मंज़िल तक पहुँचाती है I इस बेस्टसेलर में आपको अपनी आर्थिक समस्याओं के ऐसे समाधान मिलेंगे, जो ज़िन्दगी भर आपके काम आएँगे I इसमें धन कमाने, धन का संग्रह करने और धन बढ़ने के अचूक रहस्य बताए गए हैं I जॉर्ज सैम्यूअल क्लासन का जन्म लूसियाना, मिसूरी में नवंबर 1874 में हुआ I उन्होंने नेब्रास्का यूनिवर्सिटी में शिक्षा ली और स्पेनिश-अमेरिकन युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना में काम किया I वे एक सफल व्यवसायी थे और उन्होंने डेनवर, कोलोरेडो में क्लासन मैप कंपनी शुरू की, जिसने अमेरिका तथा कनाडा का पहला रोड एटलस प्रकाशित किया I 1926 में उन्होंने बचत और आर्थिक सफलता की पहली कहानी लिखी, जिसके पात्र प्राचीन बेबिलॉन के थे I इन कहानियों को बैंकों तथा बीमा कंपनियों ने बड़ी संख्या में अपने ग्राहकों में बाँटा I लाखों लोगों ने इन कहानियों की पढ़ा और इनसे लाभ उठाया I इन कहानियों को पढ़ा और इनसे लाभ उठाया I इन कहानियों में सबसे प्रसिद्द कहानी "बैबिलॉन का सबसे अमीर आदमी" है, जो इस पुस्तक का शीर्षक है I बैबिलॉन की ये कहानियाँ आधुनिक युग की प्रेरक क्लासिक का दर्जा पा चुकी हैं |


SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Bhanwarlal Meena (Author)
- Binding :Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 112 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534762
- ISBN-13 :9789386534767
DESCRIPTION:
ओमप्रकाश वाल्मीकि भारतीय दलित साहित्य के सबसे बड़े हस्ताक्षर हैं। उनकी आत्मकथा, जूठन, जिसमें उन्होंने जातीय अपमान और उत्पीड़न के कई अनछुए सामाजिक पहलुओं पर रोशनी डाली है, दलित साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। 30 जून 1950 में उत्तर प्रदेश में जन्मे वाल्मीकि ने एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त की जिसके दौरान उन्हें आर्थिक, सामाजिक और मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा। 1993 में उन्हें डा. अम्बेडकर पुरस्कार, 1995 में परिवेश सम्मान और साहित्य भूषण पुरस्कार से अलंकृत किया गया। अपनी दलित अस्मिता के आग्रह के बावजूद ओमप्रकाश वाल्मीकि के लेखन की व्यापक और गहरी चिंताएँ हैं और इसी कारण, देश, धर्म, जाति और विमर्श पर इस पुस्तक में प्रस्तुत उनके विचार आज भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण और सामयिक हैं। 2012 में जब वे दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में कैंसर का उपचार ले रहे थे तब उनकी देखभाल कर रहे युवा लेखक और दलित साहित्य के शोधार्थी भंवरलाल मीणा ने उनसे लम्बी बातचीत की। इस अंतिम बातचीत में जहाँ अनेक आत्मस्वीकार हैं, वहीं दलित दृष्टि का पुनराविष्कार भी है। यह संवाद इस मायने में अद्वितीय है कि मृत्यु को एकदम नज़दीक से देख रहे लेखक ने जीवन में अपने अनुभवों का अंतिम सार प्रस्तुत कर दिया है। 2013 को ओमप्रकाश वाल्मीकि का देहान्त हो गया। राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में अध्यापन कर रहे भंवरलाल मीणा साहित्य और विमर्श के अध्येता हैं। आदिवासी लोकगीतों पर आपकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है और लघु पत्रिका बनास जन से भी जुड़े हैं।


SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Chaman Lal (Author)
- Binding :Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2014
- Pages: 224 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287510
- ISBN-13 :9788170287513
DESCRIPTION:
दलित समाज की पीड़ा सबसे पहले पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी में भक्तिकाल के सन्तों की रचनाओं में मुखरित हुई और उन्होंने निर्भीकता से समाज में फैली इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की। उस समय के घोर रूढ़िवादी समाज में यह एक बहुत बड़ा साहस और जोखिम से भरा कदम था। उन्नीसवीं सदी में दलित चेतना के स्वर पहले महाराष्ट्र में उठे और फिर बहुत से साहित्यकारों ने दलितों की समस्या से सम्बन्धित उत्कृष्ट रचनाएँ लिखीं जिनसे देश में नई सामाजिक चेतना जागृत हुई। ‘विषैली रोटी’, ‘मैं भंगी हूँ’, ‘अपने-अपने पिंजरे’, ‘जूठन’ आदि पुस्तकों ने दलित समाज की शोचनीय स्थिति की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया है। प्रस्तुत पुस्तक में दलित समाज की पृष्ठभूमि में लिखे हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य का, दलित महिला लेखन का गहन अध्ययन किया गया है।

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Pramod Kovprat (Author)
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition :2015
- Pages: 144 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350642778
- ISBN-13 :9789350642771
DESCRIPTION:
समकालीन साहित्य के परिप्रेक्ष्य में अतीत है, वर्तमान है और भविष्य भी है। हिन्दी साहित्य विधा और विषय की व्यापकता की दृष्टि से काफी समृद्ध है। इस पुस्तक में भारत भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के विद्वान प्राध्यापकों के ज्वलंत विषयों पर आलेख सम्मिलित हैं। वैश्वीकरण, स्त्री-विमर्श, दलित-विमर्श, पर्यावरण-विमर्श, सांप्रदायिकता और आतंकवाद पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई है। समकालीनता की बुनियादी अवधारणा की विस्तृत चर्चा के साथ कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना और आत्मकथा जैसे बहुआयामी विषयों पर चर्चा इसमें मिलती है। कुल मिलाकर यह पुस्तक समकालीन साहित्य की बहुआयामी प्रवृत्तियों को प्रतिबिंबित करती है। निश्चय ही यह हिन्दी साहित्य का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।


SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Madhav Hada (Author)
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2019
- Pages: 176 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9386534800
- ISBN-13 :9789386534804
DESCRIPTION:
मानस का हंस हिंदी के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय उपन्यासों में अग्रगण्य है। अमृतलाल नागर द्वारा गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर लिखे गए इस उपन्यास के अध्ययन-अन्वेषण हेतु तैयार की गई इस पुस्तक में उपन्यास एवं कथा साहित्य के विद्वान विशेषज्ञों ने अपने आलेखों में इसके विभिन्न आयामों की मीमांसा की है। विद्यार्थियों, शोधार्थियों और उपन्यास विधा में दिलचस्पी रखने वालों के लिए आवश्यक यह पुस्तक बड़े अभाव की पूर्ति करेगी। इस पुस्तक के सम्पादक डॉ. माधव हाड़ा उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में हिंदी के आचार्य हैं। भक्तिकाल और आधुनिक साहित्य के विद्वान डॉ. हाड़ा की एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2019
- Pages: 528 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170281172
- ISBN-13 :9788170281177
DESCRIPTION:
प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।

SPECIFICATION:
- Publisher : Manoj Publications
- By : Lalchand Doohan Jigyasu
- Cover : Hardcover
- Language : English
- Edition : 2005
- Pages : 340
- Weight : 589 gm
- Size : 8.7 x 5.9 x 0.8 inches
- ISBN-10 : 8181335155
- ISBN-13 : 978-8181335159
DESCRIPTION:
The Book contains the verses of Bhagat Kabir.

Specification:
- Publisher : Fingerprint Publishing
- By : Munshi Premchand
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2019
- Pages : 432
- Weight : 300 gm
- Size : 7.7 x 4.9 x 1.5 inches
- ISBN-10 : 9388810473
- ISBN-13 : 978-9388810470
Description:
This is the story of Hori, a poor peasant, who longs to own a cow. Hori is so desperate that he gets into an agreement with one of the villagers who gives him a cow in exchange. As much as Hori is delighted, Heera, his brother, is jealous. What happens when Heera kills the cow? One of the greatest Hindi novels of modern Indian literature, Godaan was Premchand's last complete novel. It continues to remain one of the greatest Hindi novels of modern Indian literature.

Specification:
- Publisher : Rajpal & Sons
- By : Giriraj Kishore
- Cover : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2001
- Pages : 396
- Weight : 589 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10 : 8170289475
- ISBN-13 : 978-8170289470

SPECIFICATION:
- Publisher : D. K. Printworld Pvt. Ltd
- By : Gian Giuseppe Filippi
- Cover : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2014
- Pages : 186
- Weight : 635 gm.
- Size : 9 x 5.9 x 1.1 inches
- ISBN-10 : 8124603138
- ISBN-13 : 978-8124603130
DESCRIPTION:
Yama, in Hindu mythology, is the eschatologist and god of death. And is, thus, dreaded. Even in today s India, there is a fearful hesitancy, if not conscious avoidance, of any talk about him. Yet, paradoxically, the phenomenon of death does not evoke a similar fear in the Indian psyche accepted, as it is, a natural event, a part of life: just like poverty, sickness and old age. Here is an insightful, at once compelling exposition of the phenomenon of death, based on pluri millennial tradition of the Hindus which, despite the affirmation of Western attitudes in certain elitist sections of the urban society, has endured since the times of the Vedas and Indic Civilization. Exploring, contextually, the age-old Indian view of mortal existence: from the very moment of an individual s conception to his/her journey to the Kingdom of Yama through the major phases of birth, growth and ageing, Professor Filippi unveils a complex network of sentiments, beliefs, scriptural references, customs, hopes, ritualistic practices and much else relevant to the great adventure of death. Notwithstanding the sentimental undertones of the mrityu-theme, Dr. Filippi s work outstands for its rare scientific objectivity. It has grown from years of his rigorous research effort involving not only his extensive studies of Indian literature: classical and modern, but also his interviews with Indian sannyasins, brahmanas, relatives of the dead, and the persons living around the cremation grounds. Together with visual material, bibliographic references, and a glossary of non-English terms, the book holds out as much appeal to the general reader as to the specialist.

SPECIFICATION:
- Publisher : Chaukhambha Sanskrit Pratishthan
- By : Maharishi Garga
- Cover : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2013
- Pages: 842
- Size : 9.5 x 7.5 inches
- ISBN-10 : 8170840244
- ISBN-13 : 978-817084024

SPECIFICATION:
- Publisher : Prabhat Prakashan
- By : Ravi Subramanian
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2016
- Pages : 320
- Weight : 550 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 9351869709
- ISBN-13: 978-9351869702
DESCRIPTION:
‘गॉड इज अपन गेमर’ एक दिलचस्प कहानी है, जो पाठक को मुंबई की गलियों से गोवा के समुद्र तट तक और वॉशिंगटन की आलीशान इमारतों से br>न्यूयॉर्क की वित्तीय राजधानी तक ले जाती है। एक ऐसी कहानी, जो पाठक को अज्ञात स्थानों की, जिन्हें किसी ने नहीं देखा, सैर कराती है, लेकिन उनका एहसास कइयों ने किया है—वह स्याह वेब। इंटरनेट का नाजुक हिस्सा। और इन सबके बीच, मानव भावनाओं की एक कहानी है। एक पिता, जिसका बेटा लौट आता है, एक राजनेता जो बेबाक है, एक बैंक का सीईओ, जिसे एक राज सीने में दफन रखना है। इस दलदल में फँसा है एक पुराना बैंकर, जिसकी गेमिंग कंपनी तबाह होनेवाली है; एक बीस वर्षीय जोड़ा, जो प्यार की तलाश में है; और एक एफबीआई एजेंट, जो अपने परिवार को भूलने के लिए अपने आपको काम में डुबो देना चाहता है। इन सारी कहानियों के बीच बुनी गई है बिटकॉयन्स की कहानी—वह आभासी मुद्रा, जिसने दुनिया में तहलका मचा दिया है। अगर इस किताब के कुछ हिस्से आपको डरा दें, दहशत पैदा कर दें और आपको ऐसा लगे कि क्या वास्तव में ऐसी बातें होती हैं तो क मानिए, इस किताब के कई चौंका देनेवाले क्षण वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित हैं। रहस्य, रोमांच और सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपस्थिति का प्रतिपल अहसास करानेवाला अत्यंत पठनीय उपन्यास|About the Author
आई.आई.एम. बेंगलुरु के छात्र रहे रवि सुब्रह्मण्यन गत दो दशकों से भारत में ग्लोबल बैंकों में अत्यंत प्रभावी भूमिका में रहे हैं। संभवतः इसी कारण वित्त-संबंधित क्षेत्रों में उनके व्यापक अनुभव से सृजित उनकी पुस्तकें अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं। वर्ष 2008 में प्रकाशित उनके प्रथम उपन्यास ‘इफ गॉड वाज ए बैंकर’ को गोल्डन क्विल रीडर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। वर्ष 2012 में उनके उपन्यास ‘द इन्क्रेडिबल बैंकर’ को इकोनॉमिस्ट क्रॉसवर्ड बुक अवॉर्ड तथा वर्ष 2013 में ‘द बैंकस्टर’ के लिए क्रॉसवर्ड बुक अवॉर्ड दिए गए। उनका नवीनतम उपन्यास ‘द बेस्टसेलर शी रोट’ है। वे पत्नी धारिणी और पुत्री अनुषा के साथ मुंबई में रहते हैं।

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By : Valmiki
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2011
- Pages : 160
- Weight : 250 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8170284902
- ISBN-13: 978-8170284901
DESCRIPTION:
वाल्मीकि रामायण विश्व साहित्य की उन चुनिंदा अनुभूतियों में से है जिसे बच्चे जितने चाव से सुनते हैं, उतनी ही जिज्ञासा से दार्शनिक भी पढते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवनचरित के माध्यम से रामायण जीवन के हर पहलू को छूती है। बुराई पर अच्छाई की जीत इसका मुख्य संदेश है, लेकिन उससे बढ़कर यह बताती है कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हम किस प्रकार एक मर्यादित और संतुलित जीवन जिया जा सकता है। हजारों साल पहले लिखी होने के बावजूद यह आज भी प्रासंगिक है। मूल रूप से संस्कृत में लिखी रामायण का यह सरल हिंदी रूपांतरण है।

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajkamal Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2016
- Pages : 140
- Weight : 200 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8126718323
- ISBN-13: 978-8126718320
DESCRIPTION:
चतुरी चमार चतुरी चमार में निराला ने विषयवस्तु के अनुरूप ही कहानी का नया रूप आविष्कृत किया है। वे कई बार संस्मरणात्मक ढंग से अपनी बात कहते हैं और अन्त में अपनी कूची के एक स्पर्श से संस्मरण को कहानी में बदल देते हैं। इन कहानियों में उनका गद्य अनावश्यक साज-सँवार से मुक्त होकर नई दीप्ति के साथ सामने आया है। इसमें जितना कसाव है, उतना ही पैनापन भी। इस कहानी-संग्रह में हास्य के कल-कल के नीचे प्रायः करुणा और आक्रोश की धारा बहती रहती है। संक्षेप में कहें तो निराला के विद्रोही तेवर और गलत सामाजिक मान्यताओं पर उनके तीखे प्रहारों ने इस छोटे से संग्रह को हिन्दी साहित्य में बेमिसाल बना दिया है।About the Author
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' नराला का जन्म वसन्त पंचमी, 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक देशी राज्य में हुआ। निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ा कोला गाँव में। शिक्षा हाईस्कूल तक ही हो पाई। हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेजी और संस्कृत का ज्ञान आपने अपने अध्यवसाय से स्वतन्त्र रूप में अर्जित किया। प्राय: 1918 से 1922 ई. तक निराला महिषादल राज्य की सेवा में रहे, उसके बाद से सम्पादन, स्वतन्त्र लेखन और अनुवाद-कार्य। 1922-23 ई. में 'समन्वयÓ (कलकत्ता) का सम्पादन। 1923 ई. के अगस्त से 'मतवाला'—मंडल में। कलकत्ता छोड़ा तो लखनऊ आए, जहाँ गंगा पुस्तकमाला कार्यालय और वहाँ से निकलनेवाली मासिक पत्रिका 'सुधा' से 1935 ई. के मध्य तक सम्बद्ध रहे। प्राय: 1940 ई. तक लखनऊ में। 1942-43 ई. से स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहकर मृत्यु-पर्यन्त स्वतन्त्र लेखन और अनुवाद कार्य। पहली प्रकाशित कविता : 'जन्मभूमि' ('प्रभा', मासिक, कानपुर, जून, 1920)। पहली प्रकाशित पुस्तक : 'अनामिका' (1923 ई.)। प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह : अनामिका, आराधना, गीतिका, अपरा, परिमल, गीतगुंज, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, बेला, अर्चना, नए पत्ते, अणिमा, रागविराग, सांध्य काकली, असंकलित रचनाएँ। उपन्यास : बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, कुल्लीभाट, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, महाराणा प्रताप, भीष्म पितामह, चमेली, काले कारनामे, इन्दुलेखा (अपूर्ण)। कहानी-संग्रह : सुकुल की बीवी, लिली, चतुरी चमार, महाभारत, सम्पूर्ण कहानियाँ। निबन्ध-संग्रह : प्रबन्ध प्रतिमा, प्रबन्ध पद्म, चयन, चाबुक, संग्रह। संचयन : दो शरण, निराला संचयन (सं. दूधनाथ सिंह), निराला रचनावली। निधन : 15 अक्टूबर, 1961

SPECIFICATION:
- Publisher : Diamond Books
- By : Raj Bahadur Pandey
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2000
- Pages : 140
- Weight : 250 gm
- Size : 12.6 x 5.3 x 0.4 inches
- ISBN-10: 8171826679
- ISBN-13: 978-8171826674
DESCRIPTION:
चार वेदों में यजुर्वेद द्वितीय वेद है। कर्मकाण्ड प्रधान इस वेद में जहां यज्ञों और और यज्ञ के विधानों का वर्णन, वहीं ज्ञान-विज्ञान, आत्म–परमात्मा तथा समाजोपयोगी सम्पूर्ण ज्ञान भी है। यजुर्वेद का ज्ञान जन-साधारण तक पहुंचे, इसी उद्देश्य से यहां उसे सरल हिंदी अनुवाद में प्रस्तुत किया जा रहा है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal & Sons
- By : Devdutt Pattanaik
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2015
- Pages : 232
- Weight : 300 gm
- Size : 8.5 x 5.5 x 0.5 inches
- ISBN-10: 9350642395
- ISBN-13: 978-9350642399
DESCRIPTION:
हिन्दुओं के अनगिनत देवी-देवताओं में से शिव सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। महादेव के नाम से भी जाने जानेवाले शिव, विष्णु और ब्रह्मा के साथ हिन्दू देवताओं के त्रिमूर्ति माने जाते हैं। शिव के अनेक रूप हैं: कहीं तो वह कैलाश पर्वत की बफऱ्ीली चोटी पर बैठे अपने पर नियंत्रण रखनेवाले एक ब्रह्मचारी योगी हैं जो दुनिया का विनाश करने की क्षमता रखते हैं तो दूसरी और अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ गृहस्थ आश्रम का आनन्द भोगते हुए गृहस्थी हैं। इनमें से कौन-सा है शिव का वास्तविक रूप? माथे पर तीसरी आँख, गर्दन में सर्प, शीश पर अर्द्धचन्द्र केशों से बहती गंगा और हाथों में त्रिशूल और डमरू-इन सब प्रतीकों का क्या अर्थ है ? शिव के अनेक रूप और प्रतीकों के पीछे छिपे हैं हमारे पौराणिक अतीत के अनेक रहस्य जिनमें से सात को समझने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajkamal Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2007
- Pages : 131
- Weight : 300 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8126713976
- ISBN-13: 978-8126713974

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajkamal Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2004
- Pages : 96
- Weight : 300 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8126713704
- ISBN-13: 978-8126713707

SPECIFICATION:
- Publisher : Vani Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : 2005
- Pages : 64
- Weight : 250 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8181432517
- ISBN-13: 978-8181432513
DESCRIPTION:
The capability of reading and other personal skills get improves on reading this book Kale karname by SuryaKant Tripathi Nirala.This book is available in Hindi with high quality printing.Books from Novel category surely gives you the best reading experience.
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajkamal Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2018
- Pages : 108
- Weight : 200 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8171786790
- ISBN-13: 978-8171786794
DESCRIPTION:
आराधना के गीत निराला-काव्य के तीसरे चरण में रचे गए हैं, मुख्यतया 24 फरवरी 1952 से आरंभ करके दिसंबर 1952 के अंत तक । इन गीतों से यह भ्रम हो सकता है कि निराला पीछे की ओर लौट गए हैं 1 वास्तविकता यह है कि ' 'धर्म-भावना निराला में पहले भी थी, वह उनमें अंत-अंत तक बनी रही । उनके इस चरण के धार्मिक काव्य की विशेषता यह है कि वह हमें उद्विग्न करता है, आध्यात्मिक शांति निराला को कभी मिली भी नहीं, क्योंकि इस लोक से उन्होंने कभी मुझेहाँह नहीं मोड़ा बल्कि इस लोक को अभाव और पीड़ा से मुक्त करने के लिए वे कभी सामाजिक और राजनीतिक आदोलनों की ओर देखते रहे और कभी ईश्वर की ओर । उनकी यह व्याकुलता ही उनके काव्य की सबसे बडी शक्ति है । '' -नंदकिशोर नवल.About the Author
निराला का जन्म वसन्त पंचमी, 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक देशी राज्य में हुआ। निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ा कोला गाँव में। शिक्षा हाईस्कूल तक ही हो पाई। हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेजी और संस्कृत का ज्ञान आपने अपने अध्यवसाय से स्वतंत्र रूप में अर्जित किया। प्राय: 1918 से 1922 ई. तक निराला महिषादल राज्य की सेवा में रहे, उसके बाद से सम्पादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। 1922-23 ई. में ‘समन्वय’ (कलकत्ता) का सम्पादन। 1923 ई. के अगस्त से ‘मतवाला’—मंडल में। कलकत्ता छोड़ा तो लखनऊ आए, जहाँ गंगा पुस्तकमाला कार्यालय और वहाँ से निकलनेवाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 ई. के मध्य तक सम्बद्ध रहे। प्राय: 1940 ई. तक लखनऊ में। 1942-43 ई. से स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहकर मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। पहली प्रकाशित कविता: ‘जन्मभूमि’ (‘प्रभा’, मासिक, कानपुर, जून, 1920)। पहली प्रकाशित पुस्तक: ‘अनामिका’ (1923 ई.)। प्रमुख कृतियाँ: कविता-संग्रह: आराधना, गीतिका, अपरा, परिमल, गीतगुंज, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, बेला, अर्चना, नए पत्ते, अणिमा, रागविराग, सांध्य काकली, असंकलित रचनाएँ। उपन्यास: बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, कुल्लीभाट, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, महाराणा प्रताप, भीष्म पितामह, चमेली, काले कारनामे, इन्दुलेखा (अपूर्ण)। कहानी-संग्रह: सुकुल की बीवी, लिली, चतुरी चमार, महाभारत, सम्पूर्ण कहानियाँ। निबन्ध-संग्रह: प्रबन्ध प्रतिमा, प्रबन्ध पद्म, चयन, चाबुक, संग्रह। संचयन: दो शरण, निराला संचयन, निराला रचनावली।.

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajkamal Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2007
- Pages : 160
- Weight : 300 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 817178643X
- ISBN-13: 978-8171786435

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajkamal Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2015
- Pages : 143
- Weight : 350 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8126713895
- ISBN-13: 978-8126713899

SPECIFICATION:
- Publisher : Medha Publishing House
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2016
- Pages : 288
- Weight : 450 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8126718773
- ISBN-13: 978-8126718771
DESCRIPTION:
महाभारत महाभारत विश्व-इतिहास का प्राचीनतम महाकाव्य है। होमर की इलियड और ओडिसी से कहीं ज्यादा प्रवीणता के साथ परिकल्पित और शिल्पित यह रचनात्मक कल्पना की अद्भुत कृति है। ऋषि वेदव्यास द्वारा ईसा के प्रायः 2000 वर्ष पूर्व रचित इस महाकाव्य में लगभग समस्त मानवीय मनोभावों - प्रेम और घृणा, क्षमा और प्रतिशोध, सत्य और असत्य, ब्रह्मचर्य और सम्भोग, निष्ठा और विश्वासघात, उदारता और लिप्सा - की सूक्ष्म प्रस्तुति मिलती है। यों तो महाभारत भारतीय मानस में रचा-बसा ग्रन्थ है पर इसने सम्पूर्ण विश्व के पाठकों को आकर्षित किया है। शायद इसीलिए इस महाकाव्य का रूपान्तर विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में हुआ है। परन्तु विस्मय होता है यह देखकर कि ज्यादातर रूपान्तरों में इसकी क्षमता का प्रतिपादन एक काव्यात्मक सौन्दर्य और सुगन्ध से समृद्ध कथा के रूप में नहीं हो पाया है। सम्भवतः इसलिए कि लेखकों ने मूलतः इसके कहानी पक्ष को ही प्रधानता दी।..किन्तु इस पुस्तक के लेखक शिव के. कुमार ने इसी कारण इस महाकाव्य में कुछ रंग और सुगन्ध भरने का प्रयास किया है। यह वस्तुतः महाभारत का एक नवीन रूपान्तर है। महाभारत एक अद्वितीय रचना है। यह काल और स्थान की सीमाओं से परे है। इसीलिए हर युग में इसके साथ संवाद सम्भव है। वर्तमान युग में भी सामाजिक न्याय, राजनीतिक स्वार्थजनित राष्ट्र विभाजन, नारी सशक्तीकरण और राजनेताओं के आचरण के सन्दर्भों में इसका सार्थक औचित्य है। अंग्रेजी से हिन्दी में इस कृति का अनुवाद करते हुए प्रभात के. सिंह ने हिन्दी भाषा की प्रकृति का विशेष ध्यान रखा है। समग्रतः एक अनूठी रचना।
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
नराला का जन्म वसन्त पंचमी, 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक देशी राज्य में हुआ। निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ा कोला गाँव में। शिक्षा हाईस्कूल तक ही हो पाई। हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेजी और संस्कृत का ज्ञान आपने अपने अध्यवसाय से स्वतन्त्र रूप में अर्जित किया।
प्राय: 1918 से 1922 ई. तक निराला महिषादल राज्य की सेवा में रहे, उसके बाद से सम्पादन, स्वतन्त्र लेखन और अनुवाद-कार्य। 1922-23 ई. में 'समन्वयÓ (कलकत्ता) का सम्पादन। 1923 ई. के अगस्त से 'मतवाला'—मंडल में। कलकत्ता छोड़ा तो लखनऊ आए, जहाँ गंगा पुस्तकमाला कार्यालय और वहाँ से निकलनेवाली मासिक पत्रिका 'सुधा' से 1935 ई. के मध्य तक सम्बद्ध रहे। प्राय: 1940 ई. तक लखनऊ में। 1942-43 ई. से स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहकर मृत्यु-पर्यन्त स्वतन्त्र लेखन और अनुवाद कार्य। पहली प्रकाशित कविता : 'जन्मभूमि' ('प्रभा', मासिक, कानपुर, जून, 1920)। पहली प्रकाशित पुस्तक : 'अनामिका' (1923 ई.)।
प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह : अनामिका, आराधना, गीतिका, अपरा, परिमल, गीतगुंज, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, बेला, अर्चना, नए पत्ते, अणिमा, रागविराग, सांध्य काकली, असंकलित रचनाएँ। उपन्यास : बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, कुल्लीभाट, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, महाराणा प्रताप, भीष्म पितामह, चमेली, काले कारनामे, इन्दुलेखा (अपूर्ण)। कहानी-संग्रह : सुकुल की बीवी, लिली, चतुरी चमार, महाभारत, सम्पूर्ण कहानियाँ। निबन्ध-संग्रह : प्रबन्ध प्रतिमा, प्रबन्ध पद्म, चयन, चाबुक, संग्रह। संचयन : दो शरण, निराला संचयन (सं. दूधनाथ सिंह), निराला रचनावली।
निधन : 15 अक्टूबर, 1961.

SPECIFICATION:
- Publisher : Rajkamal Prakashan
- By : Suryakant Tripathi Nirala
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2008
- Pages : 205
- Weight : 450 gm
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 8126705094
- ISBN-13: 978-8126705092
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