Indian Poetry Books
Indian Poetry Books
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SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2018
- Pages: 16 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641364
- ISBN-13 : 9789350641361
DESCRIPTION:
हरिवंशराय बच्चन अपनी प्रसिद्ध कविता ‘मधुशाला’ के लिए तो जाने ही जाते हैं लेकिन उन्होंने बच्चों के लिए भी कविताएँ लिखीं, यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं। इस पुस्तक में उनकी वे बाल-कविताएँ हैं, जो उन्होंने अपनी पौत्री नीलिमा के पाँचवें जन्मदिन पर लिखी थीं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2009
- Pages: 144 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287863
- ISBN-13 : 9788170287865
DESCRIPTION:
‘‘ ‘मिलन यामिनी’ में 99 कविताएँ हैं। इन्हें मैंने 33-33 के तीन भागों में विभक्त कर दिया है। पहले और तीसरे भाग में मैंने एक खास तरह के साँचे में ढली कविताएँ रखी हैं। दूसरे भाग में कोई ऐसा प्रतिबंध स्वीकार नहीं किया गया। धर्मशाला के इस मनोरम स्थान में, जहाँ एक ओर तो हिमाच्छादित धवलीधार पर्वतमाला खड़ी है और दूसरी ओर अनेक पहाड़ों, नालों और झरनों से निनादित और अभिसिंचित काँगड़ा की उर्वरा घाटी फैली है जिसकी दक्षिणी सीमा पर व्यास नदी दूर दूध की रेखा के समान दिखाई देती है, मैं अपनी वाणी पर नियंत्रण न रख सका। यही ‘मिलन यामिनी’ पूर्ण हुई है और यहीं मैंने उसके गीतों का क्रम आदि स्थापित किया एवं प्रेस कापी भी तैयार की।’’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2016
- Pages: 144 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170288096
- ISBN-13 : 9788170288091
DESCRIPTION:
‘‘ ‘मिलन यामिनी’ में 99 कविताएँ हैं। इन्हें मैंने 33-33 के तीन भागों में विभक्त कर दिया है। पहले और तीसरे भाग में मैंने एक खास तरह के साँचे में ढली कविताएँ रखी हैं। दूसरे भाग में कोई ऐसा प्रतिबंध स्वीकार नहीं किया गया। धर्मशाला के इस मनोरम स्थान में, जहाँ एक ओर तो हिमाच्छादित धवलीधार पर्वतमाला खड़ी है और दूसरी ओर अनेक पहाड़ों, नालों और झरनों से निनादित और अभिसिंचित काँगड़ा की उर्वरा घाटी फैली है जिसकी दक्षिणी सीमा पर व्यास नदी दूर दूध की रेखा के समान दिखाई देती है, मैं अपनी वाणी पर नियंत्रण न रख सका। यही ‘मिलन यामिनी’ पूर्ण हुई है और यहीं मैंने उसके गीतों का क्रम आदि स्थापित किया एवं प्रेस कापी भी तैयार की।’’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 464 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170283140
- ISBN-13 : 9788170283140
DESCRIPTION:
कालजयी रचना ‘मधुशाला’ के रचयिता हरिवंशराय बच्चन हिन्दी के सबसे लोकप्रिय कवि हैं जिनकी गिनती बीसवीं सदी के अग्रगण्य कवियों में सबसे ऊपर है। इस संकलन को स्वयं बच्चन जी ने तैयार किया था। इसमें उन्होंने अपनी सभी काव्य रचनाओं में जो उनकी नज़र में श्रेष्ठ थीं-उन्हें इसमें सम्मिलित किया। अलग-अलग समय, परिस्थिति और जीवन के पड़ाव के विभिन्न रंगों को दर्शाती ये कविताएं कवि की सम्पूर्ण काव्य-यात्रा से परिचित कराती हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 80 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170283442
- ISBN-13 : 9788170283447
DESCRIPTION:
हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना 'मधुशाला' 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आस-पास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता है। मधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे, यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 128 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 818170284260
- ISBN-13 : 9788170284260
DESCRIPTION:
'मधुशाला', 'मधुबाला', 'मधुकलश' अग्रणी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ के तीन कविता-संकलन हैं जो हिन्दी साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं और कालजयी श्रृंखलाओं की कड़ी में आ खड़े हुए हैं। इन कविताओं की रचना के समय बच्चन जी की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। 'मधुकलश' की भूमिका में बच्चन जी ने लिखा है, ‘‘ये कविताएं सन् 1935-36 में लिखी गईं और सर्वप्रथम 1937 में प्रकाशित हुईं। इसके पहले मधुशाला 1935 में और 'मधुबाला' 1936 में प्रकाशित हो चुकी थीं। मेरे जीवन का जो उत्साह, उल्लास और उन्माद-गो उनमें एक अभाव, एक असन्तोष, एक निराशा की व्यथा भी घुली-मिली थी-'मधुशाला' और 'मधुबाला' में व्यक्त हुआ था, वह अब उतार पर था।’’ आगे लिखते हैं, ‘‘ये कविताएं जीवन के रस से खाली नहीं हैं और जीवन का रस मधु ही मधु नहीं होता, कटु भी होता है...समर्थ के हाथों अमृत भी बनता है।’’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2018
- Pages: 96 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170283566
- ISBN-13 : 9788170283560
DESCRIPTION:
अग्रणी कवि बच्चन की कविता का आरंभ तीसरे दशक के मध्य 'मधु' अथवा मदिरा के इर्द-गिर्द हुआ और 'मधुशाला' एक-एक वर्ष के अंतर से प्रकाशित हुए। ये बहुत लोकप्रिय हुए और प्रथम 'मधुशाला' ने तो धूम ही मचा दी। यह दरअसल हिन्दी साहित्य की आत्मा का ही अंग बन गई और कालजयी रचनाओं कर श्रेणी में आ खड़ी हुई है। इन कविताओं की रचना के समय कवि की आयु 27-28 वर्ष की थी, अतः स्वाभाविक है कि ये संग्रह यौवन के रस और ज्वार से भरपूर हैं। स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है: 'आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं..., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा।''
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2016
- Pages: 256 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170281342
- ISBN-13 : 9788170281344
DESCRIPTION:
प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2014
- Pages: 128 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170284252
- ISBN-13 : 9788170284253
DESCRIPTION:
बारहवीं शताब्दी के फ़ारसी शायर उमर खै़याम की रुबाइयों का, जिनमें मनुष्य जीवन की भंगुरता तथा अर्थहीनता को बड़े प्रभावी शब्दों में व्यक्त किया गया है, विश्व साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सात सौ वर्ष बाद उन्नीसवीं शताब्दी में एडवर्ड फिट्ज़जेरल्ड ने इसकी चुनी हुई रुबाइयों का अंग्रेज़ी अनुवाद किया तो दुनिया भर में उसकी धूम मच गई क्योंकि इस समय तक देशों में आवागमन बहुत बढ़ चुका था और अंग्रेज़ी पारस्परिक आदान-प्रदान का माध्यम बन चुकी थी। बीसवीं शताब्दी में यह तूफ़ान भारत में भी आ पहुँचा और 30 के दशक में एक दर्जन से ज़्यादा इसके अनुवाद-अनुवादकों में मैथिलीशरण गुप्त तथा सुमित्रानंदन पंत जैसे कवि भी थे-हिन्दी में प्रकाशित हुए। यह दरअसल एक नई चेतना, एक दर्शन था जिससे सभी प्रबुद्ध जन प्रभावित हो रहे थे।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 16 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641372
- ISBN-13 : 9789350641378
DESCRIPTION:
प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन की बेटी के पाँचवें जन्मदिन के अवसर पर उनके दादा हरिवंशराय बच्चन ने कुछ कविताएँ लिखकर भेंट की थीं, जो सभी इसी पुस्तक में हैं। बच्चन जी हिन्दी साहित्य के दिग्गज कवि हैं, जिनकी कविताएँ सभी आयु वर्ग के लोग पसंद करते हैं।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2016
- Pages: 72 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287987
- ISBN-13 : 9788170287988
DESCRIPTION:
बच्चन जैसे भाव-प्रवण कवि समय के साथ अपनी कविताओं को अनेक रंगों में चित्रित करते हैं। ‘जाल समेटा’ की कविताएं उन्होंने 1960-70 के दशक में लिखी थीं। लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच कर जीवन की वास्तविकता के संबंध में उनके मन में अनेक भाव उठे। ‘जाल समेटा’ में उनकी इन भावनाओं को सजीव करती उत्कृष्ट कविताओं को पढ़िए। बच्चनजी के शब्दों में, ‘‘मेरी कविता मोह से प्रारंभ हुई थी और मोह-भंग पर समाप्त हो गयी।’’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2009
- Pages: 72 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287820
- ISBN-13 : 9788170287827
DESCRIPTION:
बच्चन जैसे भाव-प्रवण कवि समय के साथ अपनी कविताओं को अनेक रंगों में चित्रित करते हैं। ‘जाल समेटा’ की कविताएं उन्होंने 1960-70 के दशक में लिखी थीं। लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच कर जीवन की वास्तविकता के संबंध में उनके मन में अनेक भाव उठे। ‘जाल समेटा’ में उनकी इन भावनाओं को सजीव करती उत्कृष्ट कविताओं को पढ़िए। बच्चनजी के शब्दों में, ‘‘मेरी कविता मोह से प्रारंभ हुई थी और मोह-भंग पर समाप्त हो गयी।’’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2014
- Pages: 176 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287995
- ISBN-13 : 9788170287995
DESCRIPTION:
देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, बच्चनजी को उनके कविता-संग्रह ‘दो चट्टानें’ पर मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना अपनी विशिष्टता लिये हुए है। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चनजी को सम्मानित करने से साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है। इस सम्मान से वर्षों पहले से ही बच्चनजी हिन्दी के सुधी पाठकों के हृदय पर राज कर रहे थे-अपनी कविताओं के द्वारा।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardcover
- Language : Hindi
- Edition : 2013
- Pages: 176 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287839
- ISBN-13 :9788170287834
DESCRIPTION:
देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, बच्चनजी को उनके कविता-संग्रह ‘दो चट्टानें’ पर मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना अपनी विशिष्टता लिये हुए है। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चनजी को सम्मानित करने से साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है। इस सम्मान से वर्षों पहले से ही बच्चनजी हिन्दी के सुधी पाठकों के हृदय पर राज कर रहे थे-अपनी कविताओं के द्वारा।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Hardbound
- Language : Hindi
- Edition : 2019
- Pages: 236 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170282853
- ISBN-13 :9788170282853
DESCRIPTION:
प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: Harivansh Rai Bachchan
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 24 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350641356
- ISBN-13 :9789350641354
DESCRIPTION:
लोकप्रिय हिन्दी फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन के पाँचवें जन्मदिन पर उनके दादा प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंशराय बच्चन ने ये कविताएँ और एक छोटा-सा नाटक लिखा था जो कि इस पुस्तक में सम्मिलित है। कवि के रूप में बच्चन जी की हिन्दी साहित्य जगत में अपनी एक पहचान है। उनकी कविताएँ, चाहे बड़ों के लिए हों या फिर बच्चों के लिए, मन को छू जाती हैं।
THE DEVOTIONAL POEMS OF MIRABAI offers the reader a sober English translation of two hundred of her Padas, based on the interpretative work of Indian scholars that has appeared during the last few decades. Three introductory essays deal with her life, her place in the Bhakti movement and the characteristics of her poetry. Terminal notes explain the mythological references to the non-Hindu reader, indicate some linguistic difficulties and record minor deviations from the fifteenth edition of Parashuram Chaturvedi`s MIRAMBAI KI PADAVALI, the basic text used.
Description:
Sanskrit is indeed the language not only of kavya or literature but of all the Indian sciences, and excepting the Pali of the Hinayana Buddhists and the Prakrt of the jains, it is the only language in which the last 2 or 3 thousand years, and it has united the culture of Indian and given it a synchronous form in spite of general differences of popular speech, racial and geographical, economical and other differences, It is the one ground that has made it possible to develop the idea of Hindu nationhood in which kinship of culture plays the most important part. Under the shadow of one Vedic religion there had indeed developed many subsidiary religions, Saiva, Vaisnava, Sakta, etc., and within each of these, there had been many sects and subsects which have often emphasised the domestic quarrel, but in spite of it all there is a unity of religions among the Hindus, for the mother of all religious and secular culture had been Sanskrit.
Maurice Winterintz' work in three volumes seems to be the most comprehensive treatment of Sanskrit Literature. Prof. S.N. Dasgupta was approached for English translation of its 3rd Volume, after Winternitz death. Later he was approached by Calcutta University to undertake his own work on the subjects that formed the content of Volume 3rd of Professor Winternitz' work. Volume I deals with Kavya and Alamkara and Volume II is expected to deal with other Technical Sciences.
Specification:
- Product Code: BK8101-2
- Publisher : Motilal Banarsidass Publishers
- Edition : July 1, 2013
- Pages : 962
- Weight : 1.450 km.
- Size : 9.6 x 6.7 x 2.5 inches
- Cover : Hardcover
- Auther : Surendranath Dasgupta (Author), Sushil Kumar De (Author)
- Language : English
- ISBN: 8120841107, 978-8120841109
The prose order of each sloka has been given in the commentary by using bold type, the words not actually repeated by Mallinatha being enclosed within rectangular brackets. The notes explain allusions, grammatical peculiarities not noticed by Mallinatha, copious extracts from other commentaries being given for this purpose. The book includes text, the commentary of Mallinatha, a literal English translation, notes and introduction.
The hero of this poem is a divine being, and one of the Dhirodatta class. The prevailing sentiments is Sringara, Karuna and Santa, though not very prominent, being accessories to it. The 3rd and the 5th Cantos are a good illustration of Vipralambha, the 4th that of Karuna, the 7th of Vivaha, and the 8th of Sambhoga. The subject of each following canto is hinted at the end of each precedding one.
"
"Kalhana’s Rajatarangini is the most famous historical poem which records the oldest and fullest history of the legendary kings of Kashmir as well as gives accounts of the Kashmirian kings of the historical period. It consists of eight chapters and draws upon earlier sources, notably the Nilamata Purana.
Sir Stein recognising the inestimable value of the only work of its kind, succeeded in publishing the critical edition of the text as early as in 1892.
The interest of this treatise for Indian history generally lies in the fact that it represents a class of Sanskrit composition which comes nearest in character to the chronicles of Medieval Europe and of the Muhammadan East. Together with the later Kashmir chronicles which continue Kalhana’s narrative, it is practically the sole extant specimen of this class.
Its author’s object is to offer a connected narrative of the various dynasties which ruled Kashmir from the earliest period down to his own time. The final portion of the work, considerable both in extent and historical interest, is devoted to the accounts of the events which the author knew by personal experience or from the relation of living witnesses. These events are narrated from the point of view of a more or less independent chronicler and by no means the purely panegyrical object of the court-poet. "
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