Philosophy Books
Philosophy Books
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SPECIFICATION:
- Publisher : Chetana Book
- By : Nisargadatta Maharaj (Author), Jean Dunn (Editor)
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : September 5, 1999
- Pages : 215
- Weight : 270 gm.
- ISBN-10: 8185300364
- ISBN-13 : 978-8185300368
SPECIFICATION:
- Publisher : Chetana Book
- By : R.S. Balsekar (Author), J. Arya (Illustrator)
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : February 5, 1996
- Pages : 239
- Weight : 420 gm.
- ISBN-10: 8185300194
- ISBN-13 : 978-8185300191
DESCRIPTION:
This publication is alive with the intensity and force of Sri Nisargadatta Maharaj’s spiritual realization, and the fierceness and dedication with which he relentlessly strove to accelerate other’s liberation.
Nisargadatta Maharaj,the author’s spiritual guru, encouraged enquiry into the origin of consciousness and the illusory nature of arising phenomena.
“The primary reason for the book’s effectiveness is that the author enjoys a profound intuition of his teacher’s realization”. – David Diaman
SPECIFICATION:
- Publisher : Chetana Book
- By : Sudhakar S Dikshit
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : 1995
- Pages : 95
- Weight : 180 gm.
- ISBN-10: 8185300313
- ISBN-13 : 978-8185300313
DESCRIPTION:
These are the final philosophical reflections of Sudhakar Dikshit.In the last stage of his life, Dikshit accepted the finding of J.Krishnamurti that at the end of all meditation there is nothing.
In the words of Krishnamurti,”meditation may lead to total negation of every thing, knower and known.
There is no cause. Only movement in complete freedom. A movement with no direction or dimension.’’
That was the journey Towards Nothingness experienced by Sudhakar Dikhsit.To follow him on his journey is an adventure in learning and self discovery
SPECIFICATION:
- Publisher : Chetana Book
- By : Nisargadatta Maharaj
- Cover : Hardcover
- Language : English
- Edition : 1999
- Pages : 531
- Weight : 700 gm.
- Size : 5.79 x 1.22 x 8.74 inches
- ISBN-10: 8185300453
- ISBN-13 : 978-8185300450
DESCRIPTION:
Ever since it was originally published in 1973 "I AM THAT" a modern spiritual classic has run into reprint (Paperback and Hardcover both put together) seventeen times.That is the kind of popularity the book is enjoying.
I Am That is a legacy from a unique teacher who helps the reader to a clearer understanding of himself as he comes to Maharaj,the spiritual teacher, again and again with the age-old questions,"where am I" "who am I" and "whither am I".The listeners were never turned away from the humble abode of Maharaj then and are not turned away now!
SPECIFICATION:
- Publisher : Chetana Book
- By : Sudhakar S. Dikshit
- Cover : Hardcover
- Language : English
- Edition : 1989
- Pages : 172
- Weight : 450 gm.
- ISBN-10: 8185300305
- ISBN-13 : 978-8185300306
DESCRIPTION:
A prolific writer in his own right, Sudhkar Dikshit (1909-1995) was an internationally respected editor and publisher of numerous works on the Eastern philosophy including
‘I Am That’, a celebrated spiritual classic.
I Am All explores the human being as a microcosm of the cosmos whose true enlightenment comes only by transcending the notion of separateness from things and events in the world.
SPECIFICATION:
- Publisher : Chetana Book
- By : Ramesh S Baleskar
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : 1997
- Pages : 287
- Weight : 500 gm.
- ISBN-10: 8185300569
- ISBN-13 : 978-8185300566
DESCRIPTION:
This is an English translation of a Marathi classic Amritanubhava by Jnaneshwar, a thirteenth century
saint – poet of Maharastra,India .This is one of the earliest texts of Advaita Vedanta.
“Amritanubhava is perhaps the brightest gem among the Advaita classics, brilliantly expounded here
by Balsekar in his illuminating commentary in the light of his master ,Sri Nisargadatta Maharaj”.– Editor
SPECIFICATION:
- Publisher : Chetana Book
- By : Nisargadatta Maharaj
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : 1999
- Pages : 118
- Weight : 210 gm.
- ISBN-10: 8185300348
- ISBN-13: 978-8185300344
DESCRIPTION:
Jean Dunn has once again accompanied the great teacher of ‘IAMNESS’ on his journey through the material world and recorded his precious final teachings. To hear faithful transcription of the Maharaj’s voice is to put oneself at his feet one more time. Long time students of this great teacher will find comfort in the unchanging assurances of a spiritual testament which has already touched their lives; new comers to his message of beingness and the final abode of the absolute will find here the keys he offers to unlocking the human riddle and may then deepen their understanding by reading the earlier works of Maharaj.Each of his messages reads as a final insistent imperative.
“True happiness cannot be found in things that change, decay and die. True happiness comes from the self and can be found in self only-not your bodily self, but the inner self - which is the everlasting reservoir of joy. All search for happiness outside yourself is misery and leads to more misery.”- Nisargadatta Maharaj
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2018
- Pages: 132 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287596
- ISBN-13 9788170287599
DESCRIPTION:
1981 में ज़ानेन, स्विट्ज़रलैंड तथा एम्स्टर्डम में आयोजित इन वार्ताओं में कृष्णमूर्ति मनुष्य मन की संस्कारबद्धता को कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग की मानिंद बताते हैं। परिवार, सामाजिक परिवेश तथा शिक्षा के परिणाम के तौर पर मस्तिष्क की यह प्रोग्रामिंग ही व्यक्ति का तादात्म्य किसी धर्म-विशेष से करवाती है, या उसे नास्तिक बनाती है, इसी की वजह से व्यक्ति राजनीतिक पक्षसमर्थन के विभाजनों में से किसी एक को अपनाता है। हर व्यक्ति अपने विशिष्ट नियोजन, 'प्रोग्राम' के मुताबिक सोचता है, हर कोई अपने खास तरह के विचार के जाल में फंसा है, हर कोई सोच के फंदे में है। सोचने-विचारने से अपनी समस्याएं हल हो जाएंगी ऐसा मनुष्य का विश्वास रहा है, परंतु वास्तविकता यह है कि विचार पहले तो स्वयं समस्याएं पैदा करता है, और फिर अपनी ही पैदा की गई समस्याओं को हल करने में उलझ जाता है। एक बात और, विचार करना एक भौतिक प्रक्रिया है, यह मस्तिष्क का कार्यरत होना है; यह अपने-आप में प्रज्ञावान नहीं है। उस विभाजकता पर, उस विखंडन पर गौर कीजिए जब विचार दावा करता है, ‘मैं हिन्दू हूं’ या ‘मैं ईसाई हूं’ या फिर ‘मैं समाजवादी हूं’-प्रत्येक ‘मैं’ हिंसात्मक ढंग से एक-दूसरे के विरुद्ध होता है। कृष्णमूर्ति स्पष्ट करते हैं कि स्वतंत्रता का, मुक्ति का तात्पर्य है व्यक्ति के मस्तिष्क पर आरोपित इस ‘नियोजन’ से, इस ‘प्रोग्राम’ से मुक्त होना। इसके मायने हैं अपनी सोच का, विचार करने की प्रक्रिया का विशुद्ध अवलोकन; इसके मायने हैं निर्विचार अवलोकन-सोच की दखलंदाज़ी के बिना देखना। ‘‘अवलोकन अपने आप में ही एक कर्म है’’, यही वह प्रज्ञा है जो समस्त भ्रांति तथा भय से मुक्त कर देती है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2018
- Pages: 232 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170286697
- ISBN-13 :9788170286691
DESCRIPTION:
‘शिक्षा क्या है’ में जीवन से संबंधित युवा मन के पूछे-अनपूछे प्रश्न हैं और जे. कृष्णमूर्ति की दूरदर्शी दृष्टि इन प्रश्नों को मानो भीतर से आलोकित कर देती है पूरा समाधान कर देती है। ये प्रश्न शिक्षा के बारे में हैं, मन के बारे में हैं, जीवन के बारे में हैं, विविध हैं किंतु सब एक दूसरे से जुड़े हैं। ‘‘गंगा बस उतनी नहीं है, जो ऊपर-ऊपर हमें नज़र आती है। गंगा तो पूरी की पूरी नदी है, शुरू से आखिर तक; जहां से इसका उद्गम होता है, उस जगह से वहां तक, जहां यह सागर से एक हो जाती है। सिर्फ सतह पर जो पानी दीख रहा है, वही गंगा है, यह सोचना तो नासमझी होगी। ठीक इसी तरह से हमारे होने में भी कई चीज़ें शामिल हैं, और हमारी ईजादें, सूझें, हमारे अंदाज़े, विश्वास, पूजा-पाठ, मंत्र-ये सब-के-सब तो सतह पर ही हैं। इनकी हमें जांच-परख करनी होगी, और तब इनसे मुक्त हो जाना होगा-इन सबसे, सिर्फ उन एक या दो विचारों, एक या दो विधि-विधानों से ही नहीं, जिन्हें हम पसंद नहीं करते।’’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 176 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350642840
- ISBN-13 :9789350642849
DESCRIPTION:
जिसे हम प्रेम कहते-समझते हैं, क्या वह सच में प्रेम है? क्या अकेलेपन की वास्तविक प्रकृति वही है जिसका अनुमान हमें डराता है और हम उससे दूर भागते रहते हैं, और इस कारण जीवन में कभी भी उस एहसास से हमारी सीधे-सीधे मुलाकात नहीं हो पाती? दैनिक जीवन के निकष पर इन दो सर्वाधिक आवृत प्रतीतियों के अनावरण का सफर है: ‘प्रेम क्या है? अकेलापन क्या है?’ जे. कृष्णमूर्ति के शब्दों में अधिष्ठित निःशब्द से रहस्यों के धुँधलके सहज ही छँटते चलते हैं, और जीवन की उजास में उसकी स्पष्टता सुव्यक्त होती जाती है। ‘मन जब किसी भी तरकीब का सहारा लेकर पलायन न कर रहा हो, केवल तभी उसके लिए उस चीज़ के साथ सीधे-सीधे संपर्क-संस्पर्श में होना संभव है जिसे हम अकेलापन कहते हैं, अकेला होना। किंतु, किसी चीज़ के साथ संस्पर्श में होने के लिए आवश्यक है कि उसके प्रति आपका स्नेह हो, प्रेम हो।’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2016
- Pages: 192 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 93506413310
- ISBN-13 :9789350641330
DESCRIPTION:
जिसे हम प्रेम कहते-समझते हैं, क्या वह सच में प्रेम है? क्या अकेलेपन की वास्तविक प्रकृति वही है जिसका अनुमान हमें डराता है और हम उससे दूर भागते रहते हैं, और इस कारण जीवन में कभी भी उस एहसास से हमारी सीधे-सीधे मुलाकात नहीं हो पाती? दैनिक जीवन के निकष पर इन दो सर्वाधिक आवृत प्रतीतियों के अनावरण का सफर है: ‘प्रेम क्या है? अकेलापन क्या है?’ जे. कृष्णमूर्ति के शब्दों में अधिष्ठित निःशब्द से रहस्यों के धुँधलके सहज ही छँटते चलते हैं, और जीवन की उजास में उसकी स्पष्टता सुव्यक्त होती जाती है। ‘मन जब किसी भी तरकीब का सहारा लेकर पलायन न कर रहा हो, केवल तभी उसके लिए उस चीज़ के साथ सीधे-सीधे संपर्क-संस्पर्श में होना संभव है जिसे हम अकेलापन कहते हैं, अकेला होना। किंतु, किसी चीज़ के साथ संस्पर्श में होने के लिए आवश्यक है कि उसके प्रति आपका स्नेह हो, प्रेम हो।’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2015
- Pages: 230 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287529
- ISBN-13 :9788170287520
DESCRIPTION:
प्रथम और अंतिम मुक्ति' में जे. कृष्णमूर्ति की अंतर्दृष्टियों का व्यापक व सारगर्भित परिचय तथा उनमें सहभागिता का चुनौती-भरा निमंत्रण प्राप्त होता है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के विविध सरोकारों का समावेश इस एक पुस्तक में उपलब्ध है जो अंग्रेज़ी पुस्तक 'द फस्र्ट एंड लास्ट फ्रीडम' का अनुवाद है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1954 में हुआ था लेकिन आज भी यह पुस्तक कृष्णमूर्ति की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में से एक है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के सघन अध्ययन में एक और आयाम जुड़े, इसी अभिप्राय से यह संस्करण प्रस्तुत है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition :2015
- Pages: 112 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350643537
- ISBN-13 :9789350643532
DESCRIPTION:
”मन का मौन परिमेय नहीं है, उसे मापा नहीं जा सकता। मन को पूरी तरह से खामोश होना होता है, विचार की एक भी हलचल के बिना। और यह केवल तभी घटित हो सकता है, जब आपने अपनी चेतना की अंतर्वस्तु को, उसमें जो कुछ भी है उस सब को, समझ लिया हो। वह अंतर्वस्तु, जो कि आपका दैनिक जीवन है--आपकी प्रतिक्रियाएं, आपको जो ठेस लगी है, आपके दंभ, आपकी चातुरी तथा धूर्ततापूर्ण छलावे, आपकी चेतना का अनन्वेषित, अनखोजा हिस्सा--उस सब का अवलोकन, उस सब का देखा जाना बहुत ज़रूरी है; और उनको एक-एक करके लेने, एक-एक करके उनसे छुटकारा पाने की बात नहीं हो रही है। तो क्या हम स्वयं के भीतर एकदम गहराई में पैठ सकते हैं, उस सारी अंतर्वस्तु को एक निगाह में देख सकते हैं, न कि थोड़ा-थोड़ा करके? इसके लिए अवधान की, ‘अटेन्शन’ की दरकार होती है...“ मन की थाह पाने के मनुष्य ने बड़े जतन किये हैं। जीवन में उसकी सम्यक् भूमिका क्या है, सही जगह क्या है, यह जिज्ञासा इतिहास के प्रारंभ से ही मंथन और संवाद का विषय रही है। मन एवं जीवन से जुड़े इन प्रश्नों की यात्रा को जे.कृष्णमूर्ति ने नया विस्तार, नये आयाम दिये हैं। 1980 में श्रीलंका में प्रदत्त इन वार्ताओं में मनुष्य के जीवन को एक ऐसी किताब का रूपक दिया गया है, जो वह स्वयं है; और उसका पाठक भी वह स्वयं ही है
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2018
- Pages: 304 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 93865343810
- ISBN-13 :9789386534385
DESCRIPTION:
‘‘मैं आपको सबसे छोटी, सबसे सीधी राह बताऊँ; आप जानना चाहेंगे? ये है सिर्फ़ अवलोकन करना और फिर वहीं समाप्ति। मतलब कि अवलोकन करना, देखना, ताकि कोई अवलोकनकर्ता, देखने वाला न हो, बगैर उस अतीत के अवलोकन करना। केवल तभी आप भय की उस सकलता को, पूरेपन को देख पाते हैं, और वह खत्म हो जाता है। यह अपरोक्ष, सीधा-सादा है, अगर आप इसे कर पाएँ तो...’’ ‘जीवन एक अन्वेषण’ में जिड्डू कृष्णमूर्ति तथा जीने की कला के सह-अध्येताओं के बीच चौदह सघन संवादों का संचयन है। इन संवादों में ध्यान से सुनने के, आग्रहों और निष्पत्तियों से मुक्त रहने के एवं जीवन के गहरे प्रश्नों तथा व्यापक व नित्यनूतन प्रत्यक्ष बोध की सतत् तहकीकात के पथ-संकेत उजागर होते हैं। ¬जो प्रयोगधर्मी हैं, एवं स्वयं को जानने की प्रक्रियाओं में गहरे पैठना चाहते हैं, उनके लिए यह किताब अनमोल साबित होगी।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170288169
- ISBN-13 :9788170288169
DESCRIPTION:
मृत्यु के बाद क्या होता है, इससे कहीं अधिक सार्थकता एवं प्रासंगिकता इस तथ्य की है कि मृत्यु से पहले के तमाम वर्ष हमने कैसे जिये हैं। मन-मस्तिष्क में समाये अतीत के समस्त संग्रहों, दुख-सुख के अनुभवों, छवियों, घावों, आशाओं-निराशाओं और कुंठाओं के प्रति पूर्ण रूप से मरे बगैर हम जीवन को कभी ताज़ी-नूतन आँखों से नहीं देख सकते। मरना कोई दूर भविष्य में होने वाली डरावनी घटना न होकर इस क्षण होने वाली नवीनीकरण की प्रक्रिया है। जीवन और मृत्यु की विभाजक रेखा को ध्वस्त करती यह थीमबुक जे. कृष्णमूर्ति के अप्रतिम वचनों का एक अपूर्व संकलन है। ‘‘मृत्यु को समझने के लिए आपको अपने जीवन को समझना होगा। पर जीवन विचार की निरंतरता नहीं है, बल्कि इसी निरंतरता ने तो हमारे तमाम क्लेशों को जन्म दिया है। तो क्या मन मृत्यु को उस दूरी से एकदम सन्निकट, पास ला सकता है? वास्तव में मृत्यु कहीं दूर नहीं है, यह यहीं है और अभी है। जब आप बात कर रहे होते हैं, जब आप आमोद-प्रमोद में होते हैं, सुन रहे होते हैं, कार्यालय जा रहे होते हैं-मृत्यु सदा साथ बनी रहती है। यह जीवन में प्रतिपल आपके साथ रहती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे प्रेम रहता है। आपको यदि एक बार इस यथार्थ का बोध हो जाये, तो आप पायेंगे कि आप में मृत्युभय शेष नहीं रह गया है।’’
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 154 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170286700
- ISBN-13 :9788170286707
DESCRIPTION:
‘ईश्वर क्या है?’ जे. कृष्णमूर्ति की चर्चित और लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है। यह पुस्तक उस पावन परमात्मा के लिए हमारी खोज को केंद्र में रखती है। ‘‘कभी आप सोचते हैं कि जीवन यांत्रिक है तथा कठिन अवसरों पर, जब दुख और असमंजस घेर लेते हैं तो आप आस्था की ओर लौट आते हैं, मार्गदर्शन और सहायता के लिए किसी परम सत्ता की ओर ताकने लगते हैं।’’ कृष्णमूर्ति उस ‘रहस्यमय परम सत्ता’ को जानकारी के क्षेत्र में लाने के प्रयासों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। उनके नाकाफीपन का व्यापक विवेचन करते हैं। तथा यह स्पष्ट करते हैं कि जब हम अपनी वैचारिकता के माध्यम से खोजना बंद कर दें, केवल तभी हम यथार्थ, सत्य अथवा आनंद की अनुभूति कर पाएंगे।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2019
- Pages: 160 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287235
- ISBN-13 :9788170287230
DESCRIPTION:
महान शिक्षक जे. कृष्णमूर्ति की वार्ताओं तथा लेखन से संकलित संक्षिप्त उद्धरणों का यह क्लासिक संग्रह ध्यान के संदर्भ में उनकी शिक्षा को सार प्रस्तुत करता है-अवधान की, होश की वह अवस्था जो विचार से परे है, जो समस्त द्वंद्व, भय व दुख से पूर्णतः मुक्ति लाती है जिनसे मनुष्य-चेतना की अंतर्वस्तु निर्मित है। इस परिवर्द्धित संस्करण में मूल संकलन की अपेक्षा कृष्णमूर्ति के और अधिक वचन संगृहीत हैं, जिनमें कुछ अब तक अप्रकाशित सामग्री भी सम्मिलित है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2018
- Pages: 176 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9350640945
- ISBN-13 :9789350640944
DESCRIPTION:
आज़ादी इन्सान का सबसे बड़ा सपना रही है। लेकिन आज़ादी के मायने क्या हैं? आज़ादी और ज़िम्मेदारी का सह-संबंध क्या है? जो कुछ हमने जाना है, अनुभव किया है, जो धारणाएं हमने संजो रखी हैं, जो शास्त्र-प्रमाण हमने अपने भीतर गढ़ लिए हैं, क्या उस सबसे आज़ाद हुए बिना सृजन संभव है? ‘आज़ादी की खोज’ इन्हीं प्रश्नों की व्यापक विमर्श-यात्रा है। जे. कृष्णमूर्ति आज़ादी की अर्थवत्ता को नए आयाम देते हैं, और उसे हमारे दैनिक जीवन से जोड़ देते हैं। तब यह यात्रा केवल बुद्धिविलास बन कर नहीं रह जाती, प्रायोगिक धर्म बन जाती है जिसे हर कदम पर आज़माया जा सकता है, आज़माया जाना चाहिए।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2017
- Pages: 224 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 8170287243
- ISBN-13 :9788170287247
DESCRIPTION:
क्या आपकी दिलचस्पी महज किसी कैरियर की दौड़ में है, या आपकी मंशा यह जानने की है कि आप जीवन में वस्तुतः क्या करना पसंद करेंगे-ऐसा काम जिससे आपको सचमुच लगाव हो? क्या आज की दुनिया में जीने के लिए महत्त्वाकांक्षा और होड़ वाकई जरूरी है? व्यक्ति और समाज की समस्याओं जैसे कि गरीबी, भ्रष्टाचार और हिंसा के बारे में आपकी क्या सोच है? अपने माता-पिता और शिक्षकों के साथ आपके संबंध की बुनियाद क्या है? आज्ञापालन? विद्रोह?...या फिर समझ? प्रेम और विवाह के प्रति आपका नज़रिया क्या है? ऊब, ईष्र्या, किसी के बर्ताव से चोट पहुंचना, मज़ा कायम रखने की चाह, डर और दुख-अपने जीवन के इन सवालों से आप किस तरह दो-चार होते हैं? क्या हो सकता है मनुष्य के जीवन का उद्देश्य? मृत्यु, ध्यान, धर्म और ईश्वर के बारे में आपका क्या रुख है? जीवन से जुड़े इन जीवंत प्रश्नों का गहन अन्वेषण जे. कृष्णमूर्ति का बीसवीं सदी के मनोवैज्ञानिक व शैक्षिक विचार में मौलिक तथा प्रामाणिक योगदान है। विश्व के विभिन्न भागों में कृष्णमूर्ति जब युवावर्ग को संबोधित करते थे, उनसे वार्तालाप करते थे, तो वह उन्हें कोई फलसफा नहीं सिखा रहे होते थे, वह तो जीवन को सीधे-सीधे देख पाने की कला के बारे में चर्चा कर रहे होते थे-और वह उनसे बात करते थे एक मित्र की तरह, किसी गुरु या किन्हीं मसलों के विशेषज्ञों के तौर पर नहीं। ‘आपको अपने जीवन में क्या करना है?’ कृष्णमूर्ति की विभिन्न पुस्तकों से संकलित अपने प्रकार का पहला संग्रह है, जिसमें विशेषकर युवावर्ग को शिक्षा तथा जीवन के विषय में कृष्णमूर्ति की विशद दृष्टि का व्यवस्थित एवम् क्रमबद्ध परिचय प्राप्त होता है।
SPECIFICATION:
- Publisher : Rajpal and Sons
- By: J. Krishnamurti
- Binding : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2019
- Pages: 176 pages
- Size : 20 x 14 x 4 cm
- ISBN-10: 9389373077
- ISBN-13 :9789389373073
DESCRIPTION:
‘दि अर्जेन्सी ऑव चेन्ज’ कृष्णमूर्ति की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण पुस्तक है, जैसा कि 1971 में लंदन से प्रकाशित इसके मूल अंग्रेज़ी संस्करण के मुखपृष्ठ पर इंगित किया गया था। जीवन से जुड़े विविध विषयों पर इस पुस्तक में बेबाकी के साथ प्रश्न-दर-प्रश्न पूछे गये हैं और कृष्णमूर्ति ने बड़ी बारीकी से उनकी पड़ताल की है। वे उत्तर देकर प्रश्न को निपटा नहीं देते, बल्कि इस सहसंवाद में उन प्रश्नों के नये, अनदेखे पहलुओं को उजागर करते चलते हैं, और साथ ही पूछ भी लिया करते हैं कि साथ-साथ की जा रही इस परख के दौरान प्रश्नकर्ता के अंतर्जगत में घटित क्या हो रहा है। प्रश्नकर्ता: आप मुझसे पूछ रहे हैं कि हो क्या रहा है? मैं तो बस आपको समझने की कोशिश कर रहा हूँ। कृष्णमूर्ति: क्या आप मुझे समझने की कोशिश कर रहे हैं या कि, जिस विषय में हम बात कर रहे हैं, आप उसकी सच्चाई को देख रहे हैं जो मुझ पर निर्भर नहीं करती? यदि आप, जिस विषय में हम बात कर रहे हैं, उसकी सच्चाई को वस्तुतः देख रहे होते हैं, तब आप स्वयं अपने गुरु होते हैं, और स्वयं के ही आप शिष्य होते हैं, जो कि अपने आप को समझना है। यह समझ किसी और से नहीं सीखी जा सकती।
SPECIFICATION:
- Publisher : New Age Books
- By : Linda C. Anderson; Joan Klemp and Anthony Moore
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : 2002
- Pages : 100
- Weight : 589 gm.
- Size : 8.3 x 5.6 x 1 inches
- ISBN-10 : 8178220377
- ISBN-13 : 978-8178220376
DESCRIPTION:
An excellent guide to the ancient wisdom of Eckankar this book will prove essential to all who regardless of their religious beliefs are looking for clear answers to age-old spiritual mysteries.
Each of Anderson's 35 golden keys offers revolutionary insights about spiritual potential: Dreams are real. You don't have a soul; you are Soul. Soul Travel is a natural ability. God can be experienced through Light and Sound. You don't have to die to experience heaven.
People from around the world share their dramatic stories of heightened spiritual awareness and how it changed their lives. Each chapter is enhanced with exercises and spiritual techniques that deliver on the book's promise to give readers fuller knowledge of themselves-and of God.
SPECIFICATION:
- Publisher : Penguin India
- By : Zia Mody
- Cover : Hardcover
- Language : English
- Edition : 2013
- Pages : 256
- Weight : 331.68 gm
- Size : 8.1 x 0.9 x 5.5 inches
- ISBN-10 : 0670086622
- ISBN-13 : 978-0670086627
DESCRIPTION:
Here are the Supreme Court s ten pivotal judgements that have transformed Indian democracy and redefined our daily lives. Exploring vital themes such as custodial deaths, reservations and environmental jurisprudence, this book contextualizes the judgements, explains key concepts and maps their impacts. Written by one of India s most respected lawyers, Ten Judgements That Changed India is an authoritative yet accessible read for anyone keen to understand India s legal system and the foundations of our democracy.
SPECIFICATION:
- Publisher : Heritage Publishers
- By : Jaya Devi
- Cover : Paperback
- Language : English
- Edition : 2014
- Pages : 158
- Weight : 300 gm
- Size : 8.6 x 5.6 x 0.4 inches
- ISBN-10: 8170263344
- ISBN-13: 978-8170263340
DESCRIPTION:
From Taj to Vraj reveals the feminine nature of the soul and its relationship with the divine. Here philosophy comes to life as the author shares both her personal challenges as a spiritual practitioner and her research as a Sanskrit scholar. Jaya Devi, an independent Western women, embarked on a worldwide bicycle tour at the age of twenty-three to search for a deeper experience of love. In India, she encountered different beliefs about women and how they should live and love. Even thought strongly drawn to indian culture, she was unable to accept the common beliefs about women. Questioning whether these were actually rooted in the Vedic teachings, she delved into extensive research which took her on an unexpected journey into a new vision of love.About the Author
Jaya Devi (PhD Sanskrit) is the author of From Taj to Vraj, a spiritual guidebook for women. She is a Sanskrit scholar and her translation of the Bhagavad-Gita was published by Davidsfonds, Belgium, in 2001. She also published two other books namely, The Yoga of Eating and Spiritual Health. At present, she is writing a book on Vedic Psychology. Originally from Belgium, she found her spiritual home in India and became a disciple of Sri Satyanarayana Dasa Babaji, the founder-director of the Jiva Institute of Vaishnava Studies, Vrindavan, District Mathura, UP, India. For the past ten years she has been the secretary of the Jiva Institute where she manages their library and coordinates their seminars and cultural activities. Her inspiration is to facilitate women in their spirituality and for this she is giving workshops at the Jiva Institute.
Specification:
- Publisher : Rajpal & Sons
- By : J. Krishnamurthy
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2015
- Pages : 160
- Weight : 221 gm.
- Size : 5.5 x 0.4 x 8.5 inches
- ISBN-10 : 8170287235
- ISBN-13 : 978-8170287230
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