SPECIFICATION:
- Publisher : Vani Prakashan
- By : Vinod Kumar Shukla
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2012
- Pages : 170
- Weight : 250 g.
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 9352291239
- ISBN-13: 978-9352291236
DESCRIPTION:
ऐसे नीरस किंतु सरस जीवन की कहानी कैसी होगी? कैसी होगी वह कहानी जिसके पात्र शिकायत करना नहीं जानते, हाँ! जीवन जीना अवश्य जानते हैं, प्रेम करना अवश्य जानते हैं, और जानते हैं सपने देखना। सपने शिकायतों का अच्छा विकल्प हैं। यह भी हो सकता है कि सपने देखने वालों के पास और कोई विकल्प ही न हो। यह भी हो सकता है कि शिकायत करने वाले यह जानते ही ना हों कि उन्हें शिकायत कैसे करनी चाहिये। या तो यह भी हो सकता है कि शिकायत करने वाले यह मानते ही न हों कि उनके जीवन में शिकायत करने जैसा कुछ है भी! ऐसे ही सपने देखने वाले किंतु जीवन को बिना किसी तुलना और बिना किसी शिकायत के जीने वाले, और हाँ, प्रेम करने वाले पात्रों की कथा है विनोदकुमार शुक्ल का उपन्यास “दीवार में एक खिड़की रहती थी ।About the Author
1 जनवरी 1937 राजनांद गाँव (मध्य प्रदेश) में जन्मे श्री विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ पहचान सीरीज़ के अंतर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ था। उनका दूसरा कविता संग्रह ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ सम्भावना प्रकाशन ने 1981 में और वहीं से उनका पहला उंप्यास ‘नौकर की कमीज़’ 1979 में छपा। जिसे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का विरसिंघ देव पुरुस्कार सन 1979-80 में,रज़ा पुरुस्कार 1981 में,सृजनभारती सम्मान उड़ीसा की वर्णमाला संस्था द्वारा सन 1992 में, जैसे अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। 1994-95 में मैथिलीशरण गुप्त सम्मान।
Description
SPECIFICATION:
- Publisher : Vani Prakashan
- By : Vinod Kumar Shukla
- Cover : Paperback
- Language : Hindi
- Edition : 2012
- Pages : 170
- Weight : 250 g.
- Size : 7.9 x 5.5 x 1.6 inches
- ISBN-10: 9352291239
- ISBN-13: 978-9352291236
DESCRIPTION:
ऐसे नीरस किंतु सरस जीवन की कहानी कैसी होगी? कैसी होगी वह कहानी जिसके पात्र शिकायत करना नहीं जानते, हाँ! जीवन जीना अवश्य जानते हैं, प्रेम करना अवश्य जानते हैं, और जानते हैं सपने देखना। सपने शिकायतों का अच्छा विकल्प हैं। यह भी हो सकता है कि सपने देखने वालों के पास और कोई विकल्प ही न हो। यह भी हो सकता है कि शिकायत करने वाले यह जानते ही ना हों कि उन्हें शिकायत कैसे करनी चाहिये। या तो यह भी हो सकता है कि शिकायत करने वाले यह मानते ही न हों कि उनके जीवन में शिकायत करने जैसा कुछ है भी! ऐसे ही सपने देखने वाले किंतु जीवन को बिना किसी तुलना और बिना किसी शिकायत के जीने वाले, और हाँ, प्रेम करने वाले पात्रों की कथा है विनोदकुमार शुक्ल का उपन्यास “दीवार में एक खिड़की रहती थी ।About the Author
1 जनवरी 1937 राजनांद गाँव (मध्य प्रदेश) में जन्मे श्री विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ पहचान सीरीज़ के अंतर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ था। उनका दूसरा कविता संग्रह ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ सम्भावना प्रकाशन ने 1981 में और वहीं से उनका पहला उंप्यास ‘नौकर की कमीज़’ 1979 में छपा। जिसे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का विरसिंघ देव पुरुस्कार सन 1979-80 में,रज़ा पुरुस्कार 1981 में,सृजनभारती सम्मान उड़ीसा की वर्णमाला संस्था द्वारा सन 1992 में, जैसे अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। 1994-95 में मैथिलीशरण गुप्त सम्मान।
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